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तेरहवाँ परिच्छेद
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गया। उसने सोमभूतिके शिर मिथ्या दोषारोपण कर रुक्मिणीको अपने अन्तःपुरमें बन्द कर दिया । सोमभूति उसके वियोग से अत्यन्त व्याकुल हो गया और जीवित अवस्थामें ही मृत मनुष्यकी भाँति किसी तरह अपने दिन बिताने लगा । राजा जितशत्रुने हजार वर्षातक रुक्मिणी के साथ आनन्द-भोग किया | इसके बाद उसकी मृत्यु हो गयी और वह नरकमें तीन पल्योपमक़ी आयुवाला नारकी हुआ । वहाँसे च्युत होनेपर वह एक मृग हुआ किन्तु शिकारियोंने उसे मार डाला । बहाँसे वह एक श्रेष्ठीका पुत्र हुआ और वहॉसे मृत्यु होने पर वही फिर एक हाथी हुआ । दैवयोगसे इस जन्म में उसे -जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ, जिससे अनशनकर अठारहवें दिन उसने वह शरीर त्याग दिया। इसके बाद वह तीन पल्योपमकी आयुष्यवाला वैमानिक देव हुआ। चहाँसे च्युत होनेपर वही अब यह चाण्डाल हुआ है और वह रुक्मिणी अनेक जन्मोंके बाद कुतिया हुई है । इसी पूर्व सम्बन्धके कारण उनको देखकर तुम्हारे हृदयमें प्रेम उत्पन्न हुआ है ।" औ
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