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तेरहवाँ परिच्छेद समय सुमन यक्ष प्रकट हुआ और उसने लोगोंसे कहा कि :-"यह दोनों दुर्मति, मुनिराजको मारने आये थे, इसलिये मैंने इन्हें स्तम्भित कर दिया है। अब यदि यह दोनों दीक्षा ग्रहण करें, तो मैं इन्हें मुक्त कर सकता हूँ, अन्यथा नहीं।" ___ उन दोनोंने जब देखा कि दीक्षा लेनेके सिवा
और कोई गति नहीं है, तब उन्होंने कहा :--"हे यक्ष ! साधु धर्म अत्यन्त कठिन है, इसलिये हमलोग श्रावकधर्म ग्रहण करेंगे।"
उनका यह वचन सुनकर यक्षने उन दोनोंको मुक्त कर दिया। उस समयसे वे दोनों यथाविधि जैन धर्मका पालन करने लगे, परन्तु उनके मातापिता तो सर्वथा उससे वञ्चित ही रह गये। कुछ दिनोंके बाद अग्निभूति और वायुभूतिकी मृत्यु हो गयी और वे सौधर्म देवलोकमें छः पल्योपमं आयुवाले देवता हुए। वहाँसे च्युत होने पर गजपुरमें वे अर्हद्दास सेठके यहाँ पुत्र रूपमें उत्पन्न हुए और उनके नाम पूर्णभद्र तथा माणिभद्र रक्खे गये। पूर्व संचित पुण्यके कारण इस जन्ममें भी वे दोनों श्रावक ही हुए।