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तेरहवाँ परिच्छेद
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लिये पहले ही से खड़े थे । उन्होंने मुशलायुध फेंक कर बाकी बात में समस्त सेनाको अस्तव्यस्त कर डाला । यदि वह हाथी और घोड़ों पर जा गिरता तो वे वहीं कुचल कर रह जाते और यदि रथपर जा गिरता, तो वे घड़ेकी तरह टूट कर चूर्ण-विचूर्ण हो जाते। इस प्रकार बलरामने जब समस्त सेनाको पराजित कर दिया, तब अभिमानी रुक्मिने उनको ललकार कर कहा : "हे राम ! केवल सेनाको ही पराजित करनेसे काम न चलेगा । यदि तू अपनेको वीर मानता हो, तो मेरे सामने आ ! मैं तेरा मान मर्दन करनेके लिये यहाँ तैयार खड़ा हूँ !" रुक्मिकी यह ललकार सुनकर बलरामको बड़ा क्रोध आया। वे चाहते तो उसी समय भूशल-प्रहार द्वारा उसका प्राण ले लेते, परन्तु उन्हें कृष्णकी सूचना याद आ गयी, इसलिये उन्होंने मूशलको किनारे रख, वाणोंसे उसका रथ तोड़ डाला, वख्तर तोड़ डाला और अश्चोंको भी मार डाला । बलरामकी इस मारसे रुक्मि बहुत ही परेशान हो गया । बलरामने इसी समय उस पर क्षुरप्रबाण छोड़ कर उसके केश मूँड लिये । इसके बाद
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