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नेमिनाथ-चरित्र रुक्मि और शिशुपाल आदि उनका बाल भी बाँका नहीं कर सकते।
इसके बाद कृष्णने बलरामसे कहा :-भाई ! आप रुक्मिणीको लेकर आगे चलिये, मैं रुक्मि आदिको पराजित कर शीघ्र ही आपसे आ मिलूंगा।". . . .' बलरामने कहा :-"नहीं भाई! आप चलिये, उन सवोंको परास्त करनेके लिये मैं ही काफी हूँ !" ... कृष्ण और बलरामकी यह बातचीत सुनकर रुक्मिणी डर गयी। उसने कृष्णसे प्रार्थना की :-"प्राणनाथ ! चाहे सबको मार डालिये, परन्तु मेरे भाईको अवश्य बचाइये ! मैं नहीं चाहती कि मेरे पीछे उसका प्राण जाय और मेरे शिर कलङ्कका टीका लगे." __- रुक्मिणीकी यह प्रार्थना सुनकर कृष्णने इसके लिये बलरामको सूचना दे दी। इसके बाद बलराम वहीं खड़े होकर शत्रु-सेनाकी प्रतीक्षा करने लगे और कृष्णा रुक्मिणीको लेकर शीघ्रताके साथ आगे बढ़ गये। __ कुछ ही देरमें रुक्मि और शिशुपाल एक बहुत बड़ी सेना लिये वहाँ आ पहुँचे। बलराम उनके स्वागतके