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बारहवा परिच्छेद
४६५ करा दी कि जो शारंग धनुषको उठाकर उसकी प्रत्यञ्चा चढ़ा देगा, उसीके साथ मैं अपनी बहिन सत्यभामाका 'विवाह कर दूंगा।
सत्यभामा परम सुन्दरी रमणी थी। देखनेमें देवाङ्गनाओंको भी मात करती थी। उसके विवाहकी बात सुनते. ही चारों ओरसे, दूर दूरके राजे महाराजे वहाँ आ आकर अपना भाग्य आजमाने लगे। परन्तु उस धनुषकी प्रत्यञ्चा चढ़ाना तो दूर रहा, कोई उसका उसके स्थानसे तिल भर भी इधर उधर न कर सका.! जो लोग आते थे, वे इसी तरह विफल हो होकर लौट जाते थे। मानो उस धनुषका चढ़ानेवाला इस धरा'धाममें उत्पन्न ही न हुआ था।
धीरे धीरे यह समाचार अनाधृष्टिके कानों तक ‘जा पहुंचा। अनाधृष्टि वसुदेवका पुत्र था और मदन
वेगाके उदरसे उत्पन्न हुआ था। वह अपनेको बड़ा ही ‘वलवान मानता था और इसके लिये उसे अभिमान भी
था। उसने धनुप. चहानेका विचार किया और एक तेज रथ पर बैठकर शीघ्र ही. मथुराके लिये प्रस्थान