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नेमिनाथ-चरित्र चरण मेरे मनरूपी मानस सरोवरमें राज-हंसकी भाँति सदा निवास करें और मेरी जिह्वा निरन्तर आपका गुणगान किया करे !"
इस प्रकार जगत् प्रभुकी स्तुति कर शक्रन्द्र पुनः उन्हें शिवादेवीके पास उठा ले गये और उन्हें यथास्थान 'रख आये। इसके बाद भगवानके लिये पाँच अप्सराओंको धात्रीके स्थानमें नियुक्त कर, वे नन्दीश्वर की यात्रा कर अपने स्थानको वापस चले गये।
इसके बाद राजा समुद्रविजयने भी पुत्रके जन्मोपलक्षमें एक महोत्सव मनाया और अपने इष्टमित्र, सभाजन तथा आश्रितोंको दानादि द्वारा सम्मानित किया। जिस समय यह वालक गर्भमें आया, उस समय उसकी माताने पहले चौदह स्वम और वादको अरिष्ट रनकी चक्रधारा देखी थी, इसलिये राजाने उस बालकका नाम अरिष्टनेमि रक्खा । अरिष्टनेमिके जन्मका समाचार सुनकर वसुदेव आदि राजाओंको भी अत्यन्त आनन्द हुआ
और उन्होंने भी मथुरा नगरीमें बड़ी धूमके साथ उसका “जन्मोत्सव मनाया।