________________
ग्यारहवाँ परिच्छेद द्वारा हमारा कल्याण हो! हे बाईसवें तीर्थङ्कर ! मोक्ष सुख जिसके करतलमें है, जिसे समस्त पदार्योंका ज्ञान है, जो विविध लक्ष्मीके निधान रूप हैं, ऐसे आपकों अनेकानेक नमस्कार है ! हे जगद्गुरु ! यह हरिवंश. आज पवित्र हुआ, यह भारतभूमि भी आज पावन हुई क्योंकि आप जैसे चरम शरीरी तीर्थाधिराजका इसमें जन्म हुआ है। । हे त्रिभुवन वल्लभ ! जिस प्रकार लता समूहके लिये मेघ आधार रूप होते हैं, उसी प्रकार संसारके लिये आप आधार रूप हैं। आप ब्रह्मचर्यके स्थान और ऐश्वर्यके आश्रय रूप हैं। हे जगत्पते । आपके दर्शनसे भी प्राणियोंका मोह नष्ट होकर उन्हें दुर्लभ ज्ञानकी प्राप्ति होती है। हे हरिवंशरूपी वनकें. लिये जलधर समान ! आप अकारण त्राता हैं, अकारण वत्सल हैं और अकारण समस्त जीवोंके पालन करनेवाले है। हे प्रभो! आज भरत-क्षेत्र अपराजित विमानसे भी. अधिक महिमावान बन गया है, क्योंकि लोगोंको सम्यक्त्व देनेवाले आपने इसमें जन्म लिया है। हे. नाथ ! अब आपसे मेरी यही प्रार्थना है कि आपके.