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दसो परिच्छद
४५७ शिक्षा वचन सुनकर अपने कौँको पावन करतीं । कृष्ण समस्त गोपोंके अग्रणी थे, इसलिये उन्हें गोपेन्द्रके नामसे भी सन्बोधित करती थीं। जिस समय कृष्ण मोरपंख धारण कर मधुर स्वरसे मुरली वजाते, उस समय गोपियोंका हृदय भी थिरक थिरक कर नाचने लगता । कभी कभी गोपियाँ कृष्णसे कमल ला देनेकी प्रार्थना करती
और वे उन्हें लाकर देते । गोपियाँ इससे बहुत ही सन्तुष्ट रहती थीं । कभी कभी वे मधुर शब्दोंमें रामको उलाहना देते हुए कहने लगती:-'हे राम! तुम्हारा भाई ऐसा है कि यदि हम उसे देख लेती हैं, तो वह हमारा चित्त हरण कर लेता है और यदि हम उसे नहीं देखतीं, तो वह हमारा जीवन ही नष्ट कर देता है।" ____ कभी कभी कृष्ण पर्वतके शिखर पर चढ़ जाते और वहाँसे वंशी बजाकर रामका मनोरंजन करते थे। कभी कभी कृष्ण नृत्य करते, गोपियॉ गायन गाती और राम तवलचीकी भॉति हस्तताल देते थे। इस प्रकार विविध क्रीड़ा करते हुए राम और कृष्णके ग्यारह वर्ष देखते ही देखते सानन्द व्यतीत हो गये। . . .