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नेमिनाथ- चरित्र
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कमलसे अलग नहीं होता, उसी प्रकार गोपियाँ भी
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कृष्णसे कभी अलग न होती । कृष्णको देखते ही उनकी पलकोंका गिरना बन्द हो जाता, उनकी दृष्टि स्थिर वन जाती और उनकी जिह्वा भी कृष्णका ही जय करने लगतीं। कभी कभी वे कृष्णके ध्यानमें इसप्रकार तन्मय बन जातीं, कि उन्हें सामने रक्खे हुए पात्रोंका भी ध्यान न रहता और वे अनेकवार भूमिपर ही गायोंको दुह देतीं। कृष्ण सदा दीन दुःखियोंकी आततायियोंसे रक्षा करनेके लिये प्रस्तुत रहते थे, इसलिये कृष्णको अपने पास बुलानेके लिये अनेकवार गोपियाँ भीत और त्रस्त मनुष्योंकी भाँति झुठ मुठ चीत्कार कर उठती थीं। कृष्ण जब उनके पास जाते तब वे हॅस अपने पड़तीं और तरह तरहसे अपना प्रेम व्यक्त कर, हृदयको शान्त करतीं ।
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कभी कभी गोपियाँ निर्गुण्डी आदि पुष्पोंकी माला चनातों और कृष्णके कण्ठमें उसे जयमालकी भाँति पहना कर आनन्द मनातीं । कभी वे गीत और नृत्यादिक द्वारा कृष्णका मनोरंजन करतीं और उनके
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