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दसवाँ परिच्छेद
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कूदते सदा एक दूसरेके साथ ही रहते । यदि एक क्षणके लिये भी कोई किसीसे अलग हो जाता तो वह उनके लिये असा हो पड़ता था ।
कृष्ण बहुत ही बलवान थे । उनके शरीर में कितना बल है, इसकी कभी किसीको थाह न मिलती थी । बीच बीचमें वे ऐसे कार्य कर दिखाते थे, जिससे लोगोंको दांतों तले उंगली दबानी पड़ती थी । बड़े बड़े उत्पाती वृषभोंको, जिन्हें कोई काइमें न कर सकता था उन्हें वे केवल पूँछ पकड़ कर खड़े कर देते थे। ऐसे ऐसे कार्य उनके लिये बाँये हाथके खेल थे । अपने भाईके यह सब कार्य देखकर रामको बड़ा ही आनन्द और आचर्य होता था, परन्तु वे अपने मुखसे कुछ भी न कहकर, उदासीनकी भाँति सब कुछ देखा करते थे ।
धीरे धीरे कृष्णकी अवस्था जब कुछ बड़ी हुई, तब उनका अलौकिक रूप देखकर गोपियोंके हृदय में काम - विकार उत्पन्न होने लंगा । वे जब तब कृष्णको अपने बीचमें बैठाकर रास और वसन्त क्रीड़ा करने लगतीं। जिस प्रकार भ्रमर दल एक क्षणके लिये भी