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नेमिनाथ चरित्र उससे वह सुन्दर चित्र मांग लायी। राजकुमारीने वड़े उत्साहसे उसे देखा। देखकर वह प्रसन्न हो उठी। वह जिस पुरुषका चित्र था, उसके अंग प्रत्यङ्गसे मानो सौन्दर्य फूटा पड़ता था। उसने चित्रकारके पास जाकर पूछा :- "हे भद्र ! यह किसका चित्र है ? ऐसा रूप तो सुर, असुर या मनुष्यमें होना असम्भव है। मैं समझती हूँ कि शायद तुमने अपना कौशल दिखानेके लिये अपनी कल्पनासे यह चित्र तैयार किया है। वर्ना जरा-जर्जर विधातामें अब ऐसी शक्ति कहाँ कि वे ऐसे रूपवान पुरुषका निर्माण कर सकें।"
राजकुमारीके यह वचन सुनकर चित्रकारको हँसी आ गयी। उसने कहा :-हे मृगलोचनी ! इसे कल्पित चित्र समझनेमें तुम भूल करती हो । संसारमें अभी रूपवान पुरुषोंकी कमी नहीं। सच बात तो यह है कि जिस पुरुषका यह चित्र है, उसके वास्तविक रूपका शतांश भी इस चित्रमें मैं नहीं दिखा सका। यह अचलपुरके राजकुमार धनका चित्र है। मैंने अपनी अल्प बुद्धिके अनुसार इसे अंकित करनेकी चेष्टा की है, परन्तु