________________
पहला परिच्छेद थी। यौवनावस्था में उसने अभी पदार्पण न किया था, किन्तु उसकी सीमासे अब वह बहुत दूरी पर भी न थी। एक दिन वसन्त-ऋतुका सुहावना समय था। उसकी सखियोंने उपदनकी सैर करने पर जोर दिया। वह भी इसके लिये राजी हो गयी। शीघ्र ही मातापिताकी आज्ञा ले, वह अपनी सखियोंके साथ वसन्त-बाटिकामें जा पहुंची। वह वाटिका आम्र, अशोक, पारिजात, चम्पक आदि अनेक वृक्षोंसे सुशोभित हो रही थी। कहीं राजहंस और सारस पक्षी विचरण कर रहे थे, तो कहीं भ्रमर पंक्तियां गुजार कर रही थीं। राजकुमारी इन मनोरम दृश्योंको देखती हुई एक अशोक वृक्षके पास जा पहुंची। उसने देखा कि उस वृक्षके नीचे एक चित्रकार बैठा हुआ है। उसके हाथमें किसी रूपवान पुरुषका एक चित्र था और उसे ही वह बड़े ध्यानसे देख रहा था।
राजकुमारी धनवती भी उस चित्रको देखनेके लिये उत्सुक हो उठी। उसकी यह इच्छा देखकर उसकी कमलिनी नामक एक सखी उस चित्रकारके पास गयी और