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नेमिनाथ परित्र : एक छोर उसके पास फेंक दिया। सर्प जब उससे लिपट गया तब उन्होंने उस वस्त्रका दूसरा छोर पकड़कर, उसे अपनी ओर खींच लिया। इसके बाद वे उसे उठाकर. निरापद स्थानको ले जाने लगे, परन्तु उस स्थान तक पहुँचनेके पहले ही उसने राजा नलके हाथमें बेतरह डस. लिया। इससे नलने तुरन्त उसे दूर फेंक दिया और कहा :- वाह ! तुमने मेरे ऊपर बड़ा ही उपकार किया ! लोग सच ही कहते हैं, कि सर्पको जो दृक्ष, पिलाता है, उसे भी वह काटे बिना नहीं रहता।" . नल यह बातें कह ही रहे थे, कि विषके प्रभावसे उनका शरीर कुबड़ा, केश प्रेतकी भाँति पीले, होंठ ऊँटकी तरह लम्बे, हाथ पैर छोटें, और पेट बहुत बड़ा हो गया। अंगोंमें इस प्रकार विकृति आ जानेसे वे बहुत बदसूरत दिखायी देने लगे। इससे उन्हें बड़ा ही दुःख हुआ और वे अपने मनमें कहने लगे :-"इस प्रकार कुरूप होकर जीनेकी अपेक्षा तो मरना ही अच्छा है। अब मुझे दीक्षा ले लेनी चाहिये, ताकि इस परितापसे सदाके लिये छुटकारा मिल जायगा।" । ।