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श्राठवाँ परिच्छेद परन्तु इतनेही में उन्होंने आश्चर्यके साथ देखा कि वह सर्प सुन्दर वस्त्राभूषणोंसे विभूषित तेजपुञ्जके समान एक देव बन गया है। उसने नलसे कहा :-'हे नलकुमार ! तुम दुःखी मत हो! मैं तुम्हारा पिता निपध हूँ। मैंने तुम्हें राज्य देकर दीक्षा लेलीथी। उसके प्रभावसे मैं ब्रह्मलोकमें देव हुआ। वहाँपर अवधि ज्ञानसे तुम्हारी दुर्दशाका हाल मालूम होने पर मैंने माया सर्पका रूप धारण कर तुम्हें कुरूप बना दिया है । जिस प्रकार कड़वी दवा पीनेसे रोगीका उपकार ही होता है, उसी प्रकार इस कुरूपसेभी तुम्हें लाभ ही होगा। तुमने अपने राजत्वकालमें अनेक राजाओंको अपना दास बनाया था। इसलिये वे न्सब तुम्हारा अपकार कर सकते हैं, परन्तु तुम्हारा रूप परिवर्तित हो जानेसे वे अब तुम्हें पहचान न सकेंगे,फलतः तुम उनसे सुरक्षित रह सकोगे। दीक्षा लेनेका विचार तो इस समय तुम भूलकर भी मत करना, क्योंकि तुम्हें अभी बहुत भोग भोगने वाकी हैं। जब दीक्षा लेनेका उपयुक्त समय आयेगा, तब मैं स्वयं तुम्हें खबर दूँगा । इस समय तो तुम यही समझलो कि जो कुछ हुआ है, वह तुम्हारे