________________
आठवा परिच्छेद यह सुनकर नल उस दावानल की ओर आगे बढ़े। समीप पहुँचने पर उन्होंने देखा कि वनलताओंके झुण्डमें एक भीषण सर्प पड़ा हुआ है और वही उनका नाम ले लेकर अपनी रक्षाके लिये उन्हें पुकार रहा है।
नलको एकायक उस सर्पके पास जानेका साहस न हुआ। उन्होंने दूरहीसे उसे पूछा :- "हे भुजंग ! तुझे मेरा और मेरे वंशका नाम कैसे मालूम हुआ ? क्या तू वास्तवमें सर्प है ? सर्प तो मनुष्यकी बोली नहीं बोलते !"
सर्पने उत्तर दिया :-“हे महापुरुष ! पूर्व जन्ममें मैं मनुष्य था, किन्तु अपने कर्मों के कारण इस जन्ममें मैं सर्प हो गया हूँ। किसी सुकृतके कारण मैं इस जन्ममें भी मानुपी भाषा बोल सकता हूँ। हे यशोनिधान ! मुझे अवधिज्ञान है, इसीलिये मुझे आपका और आपके वंशादिकका नाम मालम है। आप शीघ्र ही मेरी रक्षा कीजिये, चर्ना मैं इसीमें जलकर खाक हो जाऊँगा।" ___ सर्पकी यह दीनतापूर्ण वातें सुनकर नलको उसपर दया आ गयी। उन्होंने दूरसे ही अपने उत्तरीय वस्त्रका