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आठवा पारच्छ
आठवा परिच्छेद ऋतुपर्ण और दमयन्तीके सामने आ उपस्थित हुआ। उसने हाथ जोड़कर दमयन्तीसें कहा -हे मीता ! मैं वहीं पिंगले चोर हूँ, जिसे आपने उन दो साधुओं द्वारा दीक्षा दिलायी थी। दीक्षा लेनेके बाद मैं विहार करता हुआ तापसपुर। गया और वहाँके श्मशानमें कायोत्सर्ग कर मैं अपने जीवनकी शेष समय व्यतीत करने लगा। संयोग पर्श'उसी समय एक चितासे आग उछल कर
आस पासके वृक्षों में लग गयी और उसने देखते-ही-देखते दावानलकारुप धारण कर लिया । मैं भी उस दावानलमें. जल गया, परन्तु मृत्युके समय मैं धर्मध्यानमें लीन था; इंसलिये मैं देवलोकमें देव हुओं और मेरा नाम पिङ्गल पड़ाय देवत्व प्राप्त होनेके बाद मुझे अवधि ज्ञानसे मालूम हुआ, कि आपने मेरी प्राण रक्षाकर मुझे जों प्रव्रज्या दिलायी थी उसीके प्रभावसे मैं सुरसुखका भोक्ती हुआ हूँ। हे स्वामिनी । यदि मुझे पापी समझकर आपने उस समय मेरी उपेक्षा की होती, तो मुझे धमकी प्राप्ति कदापि न होती और मैं अवश्य नरकका अधिकारी होता है देवी 1 ?आपके ही प्रसादसें मुझे यह देवत्व