________________
आठनों परिच्छेद देने लगी। रानी चन्द्रयशा दमयन्तीको सजावजा कर राजा ऋतुपर्णके पास लिवा ले गयी। उस समय राजा एक कमरेमें बैठे हुए थे। रात हो चुकी थी और चारों
ओर घोर अन्धकार फैला हुआ था। कमरेमें एक बत्ती जल रही थी, जो काफी तेज थी, लेकिन फिर भी वह उस स्थानके अन्धकारको पूर्णरूपसे दूर करनेमें समर्थ न थी। रानी चन्द्रयशाने कमरे में पैर रखते ही वह बत्ती बुझा दी। साथ ही उसने दमयन्तीके ललाटका वस्त्र हटाकर उसका वह तिलक खोल दिया। तिलक खोलते. ही वह कमरा जग-मगा उठा।
राजाने चकित होकर पूछा :-"प्रिये! तुमने दीपक तो यहाँ आते ही बुझा दिया था, अब यह इतना प्रकाश कहाँसे आ रहा है ? मुझे तो ऐसा मालूम होता है, मानो यह रात नहीं बल्कि दिन है।"
चन्द्रयशाने कहा :-"नाथ ! यह दमयन्तीके भाले तिलकका प्रताप है । इसके रहने पर सूर्य, चन्द्र, दीपक या रत्न-किसी भी वस्तुकी जरूरत नहीं पड़ती। इसका प्रकाश बहुत दूर तक फैल जाता है और उस