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नेमिनाथ चरित्र
किया जा सकता। खैर, होनहार होकर ही रहता है। तुम्हारे भाग्य में यह दुःख बदा था, इसीलिये तुम्हें भोग करना पड़ा !"
इस प्रकार नाना प्रकारकी बातें कहकर चन्द्रयशाने दमयन्तीको सान्त्वना दी। इतने ही में उसे स्मरण आ गया कि दमयन्तीके ललाट पर तो सूर्य के समान परम तेजस्वी एक तिलक था, वह क्यों नहीं दिखायी देता ? उसने दमयन्तीके ललाटकी ओर देखा । दमयन्ती जान बूझ कर उसकी सफाई न करती थी इसलिये वह मैला कुचेला हो रहा था। रानी चन्द्रयशाने हाथमें जल लेकर उसे भली भांति धो दिया । धोते ही वह तिलक इस प्रकार चमक उठा, जिस प्रकार बादल छँट जाने पर वर्षाके दिनों में सूर्य चमक उठता है।
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इसके बाद रानी चन्द्रयशा बड़े आदर के साथ उसे दानशाला से अपने राजमहलमें लिवा लायी । वहाँ उसने स्वयं अपने हाथसेवा करा कर मनोहर श्वेत वस्त्र उसे पहननेको दिये । मौसीका यह प्रेम और आदर भाव देख कर दमयन्तीके होठों पर भी आज हॅसी दिखायी