________________
आठवाँ परिच्छेद
३६१
इस प्रकार दमयन्तीको उलाहना देनेके बाद रानी चन्द्रयशा उसकी दुरवस्थाके लिये रोने कलपने लगी । शान्त होनेपर उन्होंने दमयन्तीसे पूछा :- "हे पुत्री ! तुमने नलको त्याग दिया था या नलने तुमको त्याग दिया था ? मैं समझती हूँ कि उन्होंने ही तुम्हें त्याग दिया होगा। तुम तो सती हो, इस लिये ऐसा अनुचित काम तुम कर भी कैसे सकती हो ? अब तक मैंने कहीं भी ऐसा नहीं सुना कि किसी पतिव्रता स्त्रीने संकटावस्था में पड़े हुए अपने पतिको त्याग दिया हो। जिस दिन इस देशकी सती साध्वी स्त्रियाँ ऐसा करने लगेंगी, उस दिन यह पृथ्वी अवश्य रसातलको चली जायगी । परन्तु नलने भी तुम्हें त्यागकर बड़ा ही अनुचित कार्य किया
। वे तुम्हें मेरे यहाँ या तुम्हारी माताके यहाँ क्यों न छोड़ गये ? ऐसी महासती भार्याको जंगलमें अकेली -छोड़ देना नलके लिये बड़े कलङ्ककी बात है । इस कार्य द्वारा उन्होंने अपने कुलको भी कलङ्कित बना दिया है । हे वत्से ! तुम मेरा अपराध क्षमा करो। मैंने तुम्हें यहचाननेमें ऐसी बड़ी भूलकी है, जिसका वर्णन भी नहीं"