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नेमिनाथ चरित्र
भूमि रक्तरञ्जित बन जाती। इस प्रकार दमयन्तीने अपने रक्तसे उस वन-भूमिको मानो इन्द्रवधूटियोंसे पूण बना दिया। नलने उसे आराम पहुंचानेके लिये अपनी धोती फाड़कर उसके दोनों पैरोंमें पट्टी बाँध दी, किन्तु इससे क्या होता था। जिसने कभी महलके बाहर पैर भी न रक्खा था, उसके लिये इस तरह वनवन भटकना बहुत ही दुष्कर था। ____ दमयन्ती वारंवार थककर वृक्षोंके नीचे बैठ जाती। 'नल अपने वस्त्रसे उसका पसीना पोछते और उसे हवा करते। दमयन्ती जब प्यासी होती, तृपाके कारण जब उसका कंठ सूखने लगता, तब नल पलाश पत्तोंका दोना बनाकर किसी सोते या नदीसे उसके लिये जल भर लाते और उससे तृपा निवारण करते। यह सब करते हुए उनका हृदय विदीर्ण हुआ जाता था, अपनी हृदयेश्वरीकी यह दयनीय दशा देखकर उनकी आँखोंमें आँसू भर आते थे, किन्तु लाचारी थी। यह सब सहन करनेके सिवा और कोई उपाय भी न था।
एकदिन दमयन्तीने पूछा:-नाथ ! अभी यह