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आठवाँ परिच्छेद
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जंगल और कितना बाकी है ? अभी इसे पार करने में कितने दिन लगेंगे ? मुझे तो ऐसा मालूम होता मानों इस जंगलमें ही मेरे जीवनका अन्त आ जायगा ।"
नलने कहा :- "प्रिये ! यह जंगल तो सौ योजनका है जिसमेंसे हम लोगोंने शायद ही पाँच योजन अभी पार किये हों । किन्तु विचलित होनेकी जरूरत नहीं । जो मनुष्य विपत्तिकालमें धैर्य से काम लेता है, वही अन्तमें सुखी होता है ।"
इस तरहकी बातें करते हुए दोनों जन जंगलमें चले जा रहे थे । धीरे-धीरे शाम हुई और सूर्य भगवान भी अस्त हो गये । नलने देखा कि अब दमयन्ती बहुत थक गयी है, साथ ही रात्रिके समय जंगलमें आगे बढ़ना ठीक भी नहीं, इसलिये उन्होंने अशोकवृक्षके पत्ते तोड़कर उसके लिये एक शैय्या तैयार कर दी। इसके बाद उन्होंने दमयन्तीसे कहा : – “प्रिये ! अब तुम इस शैय्या पर विश्राम करो । यदि तुम्हें थोड़ी देरके लिये भी निद्रा आ जायगी, तो तुम अपना सारा दुःख भूल जाओगी ।
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