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पाठवा परिच्छेद विपत्तिका शिकार होना पड़ता है, तो कभी किसी विपत्तिका - जिस स्थानपर स्थ खड़ा किया था, उस स्थानपरं आकर नलने देखा, तो रथका कहीं पता भी न था। केवल सारथी दुःखित भावसे एक 'ओर खड़ा था। उसने नलको बतलाया, कि जिस समयः आप भीलोंको खदेड़ने गये थे, उसी समय भीलोंका एक दूसरा दल यहाँ आया और उसने वह स्थ मुझसे छीन लिया। यह सुनकर नल अवाक् हो गये। कहने सुननेकी कोई बात भी न थी। दैव दुर्बलका घातक हुआ ही करता है। अब वे सारथीको कोशला नगरीकी ओर बिदा कर चुपचाप वहाँसे चल पड़े और दमयन्तीका हाथ पकड़कर उस भयंकर जंगलमें * भटकने लगे।
बेचारी दमयन्ती पर ऐसी मुसीबत कभी न पड़ी थी। उसके कोमल पैर वनकी कठिन भूमिमें विचरण करनेसे क्षत-विक्षत हो गये। कहीं उसके पैरोंमें काँटे चुभ जाते, तो कहीं कुशके मूल। उसके पैरोंसे रक्तकी धारी बहने लगी। वह जिधर पैर रखती उधरकी ही