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आठवाँ परिच्छेद
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इधर निषधराजके आगमनका समाचार पहलेही 'नगरमें फैल गया था, इसलिये जनताने उनके स्वागतकी पूरी तैयारी कर रखी थी। नगरके सभी रास्ते ध्वजा
और पताकाओंसे सजा दिये गये थे। घर-घर मंगलाचार हो रहा था। निपधराजने अच्छा दिन देखकर अपने दोनों पुत्र और पुत्रवधूके साथ नगर प्रवेश किया । निपधराजने यहाँपर भी अपनी ओरसे नलका विवाहोत्सन मनाया और दीन तथा आश्रितोंको दानादि देकर सन्तुष्ट किया।
इसके बाद नल और दमयन्तीने बहुत दिनोंतक अपना समय आनन्दपूर्वक व्यतीत किया। अन्तमें राजा निषधको वैराग्य उत्पन्न हुआ, इसलिये उन्होंने नलको अपने सिंहासनपर बैठा कर और कुवेरको युवराज बनाकर दीक्षा ले ली। नलकुमार परम न्यायी और नीतिज्ञ थे, इसलिये उन्होंने इस गुरूतर भारको आसानीसे उठा लिया । वे सन्तानकी ही भाँति प्रजाका पालन करते थे
और उसके दुःखसे दुःखी तथा सुखसे सुखी रहते थे। अपने इस गुणके कारण वे शीघ्रही जनताके प्रेम-भाजन