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२७६ - नेमिनाथ-चरित्र काटा है, किन्तु फिर भी वे परिशह सहन कर रहे हैं। हाथी द्वारा उत्पीड़ित होनेपर भी अपने स्थान या ध्यानसे न डिगनेवाले मुनिराजका अनायास दर्शन होना वास्तवमें बड़े सौभाग्यका विषय है।" ___पुत्रके यह वचन सुनकर निपधराजको भी उस मुनिराज पर श्रद्धा उत्पन्न हुई। वे अपने पुत्र और परिवारके साथ उनके पास गये और उनको चन्दन कर कुछ देरतक उनकी सेवा की। इसके बाद उनकी रक्षाका प्रबन्ध कर वे वहाँसे भी आगे बड़े और शीघ्र ही कोशला नगरीके. समीप जा पहुंचे। नलने दमयन्तीको उसे दिखाते हुए कहा :-"प्रिये ! देखो, यही जिन चैत्योंसे विभूषित. हमारी नगरी है।"
नलके यह कहनेपर दमयन्तीने उन विशाल जिन चत्योंको देखा। उनके बाथ दर्शनसे ही उसका हृदय मत्त मयूरकी भॉति थिरक उठा। उसने उत्साहित होकर कहा :-"मैं धन्य हूँ जो मुझे आप जैसे पति मिले, जो इस रमणीय नगरीके स्वामी हैं। मैं इन चैत्योंकी नित्यः वन्दना किया करूंगी।"