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आठवाँ परिच्छेद
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अपना ललाट धो दिया। फलतः उसका तिलक अन्ध- कार में सूर्य की भाँति प्रकाशित हो उठा और उसी प्रकाशमें समस्त सेना उस दिन का रास्ता तय कर निर्दिष्ट स्थानमें जा पहुँची ।
दूसरे दिन मार्ग में नलको एक प्रतिमाधारी मुनिराज दिखायी दिये। उनके चारों ओर भ्रमर इस तरह चक्कर काट रहे थे। जिस तरह मधुर रस और परागके फेर में वे कमलके आसपास चकर काटा करते हैं। उन्हें देखते ही नलकुमार अपने पिताके पास दौड़ गये और उनसे कहने लगे :- " पिताजी ! क्या आपने इन -निराजको नहीं देखा १ चलिये, इन्हें चन्दन कीजिये और राह चलते इनके दर्शनका पुण्य लूटिये । देखिये, यह मुनिराज कायोत्सर्ग कर रहे हैं। किसी मदोन्मत्त हाथीने खुजली मिटानेके लिये अपना गण्डस्थल इनके शरीरसे रगड़ दिया है। मालूम होता है कि वैसा करते समय उसका मदजल मुनिराजके शरीर में लग गया है और उसीकी सुगन्धसे यह मधु लोलुप भौंरोंका दल यहाँ खिंच आया है। इन भौंरोंने मुनिराजको न जाने कितना