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नेमिनाथ चरित्र कोंने कूप, तालाब और नदियोंका जल पी-पीकर उन्हें खाली कर डाला, सेनाके चलनेसे इतनी धूल उड़ती थी, कि उसके कारण आकाशमें दूसरी भूमि सी प्रतीत होने लगती थी । राजा निषध अपने नगर पहुंचनेके लिये इतने अधीर हो रहे थे, कि वे किसी भी विन-वाधाकी परवाह न कर तूफानकी तरह निश्चित मार्ग पार करनेके बाद ही विश्रामका नाम लेते थे। ___ एकदिन निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचने के पहलेही मार्गमें सूर्यास्त हो गया। अन्धकारमें जल, स्थल, गढ़ा या टीला कुछ भी दिखायी न देता था। ऐसी अवस्थामें सेनाके लिये आगे बढ़ना बहुतही कठिन हो गया। आँखे होने पर भी सब लोग अन्धेकी तरह इधर-उधर भटकने और ठोकरें खाने लगे। सेनाकी यह अवस्था देखकर नलने गोदमें लेटी हुई दमयन्तीसे कहा :-"प्रिये ! इस समय हमारी सेना अन्धकारके कारण विचलित हो रही है। तुम्हें इस समय अपने तिलक-भास्करको प्रकाशित कर सेनाको आगे बढ़नेमें सहायता करनी चाहिये।"
पतिदेवके यह वचन सुनकर दमयन्तीने जल लेकर