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नेमिनाथ-चारत्र
व्यंग छिपा हुआ था । इसलिये चतुरा कनकवती तुरन्त समझ गयी, कि उसकी इस विडम्बनामें अवश्य कुवेरका "कुछ हाथ है । इसलिये वह उनके सामने जा खड़ी हुई और हाथ जोड़कर दीनतापूर्वक कहने लगी :- "हे देव ! पूर्व जन्मकी पत्नी समझ कर आप मुझसे दिल्लगी न कीजिये | मुझे सन्देह होता है कि मेरे प्राणनाथको आपहीने कहीं छिपा दिया है । हे भगवन् ! क्या आप मेरा यह सन्देह दूर न करेंगे ?"
कनकचतीकी यह प्रार्थना सुनकर कुबेर हँस पड़े । उन्होंने वसुदेवकी ओर देखकर कहा :- "हे महाभाग ! मेरी दी हुई उस अंगुठीको अब अपनी उंगलीसे निकाल दीजिये ।"
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कुबेरकी यह आज्ञा सुनकर वसुदेवने उंगली से वह अंगूठी निकाल दी । निकालते ही वे पुनः अपने स्वाभाविक रूपमें दिखायी देने लगे । कनकवती उन्हें देखते ही आनन्दसे पुलकित हो उठी। उसने तुरन्त अपनी जयमाल उनके गलेमें डाल दी । कुबेर भी इस मणिकाञ्चन योगसे प्रसन्न हो उठे । उनकी आज्ञासे देवताओंने आकाशमें