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सातवीं परिच्छेद
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गयी, कि उनके वेशविन्यासमें कहीं कोई त्रुटि तो नहीं है, फलतः वे वारंवार अपने वस्त्राभूषणांकी ओर देखने लगे, किन्तु कनकवती दससे मस न हुई । उसकी यह अवस्था देखकर एक सखीने कहा :- "हे सुन्दरि 1 यही उपयुक्त समय है । इन राजाओंमें से जिसे तुम पसन्द करती हो, उसे अब जयमाल पहनाने में विलम्ब मत करो !"
कनकवतीने कुण्ठित होकर कहा :- "हे सखी ! मैं जयमाल किसे पहनाऊँ? मैंने जिसे पसन्द किया था, अपना हृदय हार बनाना स्थिर किया था, वह खोजने पर भी इस समय कहीं दिखलायी नहीं देता ।"
यह कहते-कहते कनकवतीकी आँखों में आँसू भर आये। वह अपने मनमें कहने लगी :- " हा दैव ! अब मैं क्या करूं और कहाँ जाऊं १ यदि मुझे वसुदेव कुमार न मिलेंगे, तो मेरी क्या अवस्था होगी १ हा देव ! वे कहाँ चले गये ?"
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इसी समय कनकवतीकी दृष्टि कुबेर पर जा पड़ी। वे उसे देखकर मुस्कुराने लगे । उनकी उस मुस्कुराहट में