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सातवों परिच्छेद
२३१ जोड़ीकी सृष्टि की है। मैंने यह सोचकर कि तुम दोनों का विवाह मणिकाञ्चनका योग हो सकता है इसीलिये यह चेष्टा आरम्भ की है। आशा है कि इससे तुम अप्रसन्न न होगी।
तुम्हें देखनेके बाद कुमारके सामने मैंने तुम्हारे रूप का वर्णन किया था। इससे उनके हृदयमें भी तुम्हारे प्रति प्रेमभाव उत्पन्न हो गया है। वे तुम्हारे स्वयंवरमें अवश्यही पधारेंगे। आकाशमें अगणित नक्षत्र होनेपर भी जिस प्रकार चन्द्रको पहचाननेमें कोई कठिनाई नहीं पड़ती, उसी प्रकार उनको पहचाननेमें भी तुम्हें कोई कठिनाई न पड़ेगी। अपने रूप, यौवन और अपनी तेजस्विताके कारण, हजार राजकुमारोंके बीचमें होनेपर भी वे सबसे पहले तुम्हारा ध्यान आकर्षित कर लेंगे। हे राजकुमारी ! यदि तुम उनसे विवाह करोगी, अपनी जयमाल उनके गलेमें डालोगी, तो अवश्य ही तुम्हारा जीवन सुखमय बन जायगा। तुम अपनेको धन्य समझने लगोगी।"
इतना कह उस हँसने राजकुमारीसे विदा माँगी।