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छठा परिच्छेद
१८५ ___ सार्थवाहने कहा:-"यहाँके राजा सोमदत्तके सोमश्री नामक एक कन्या है। उसके स्वयंवरके लिये यह सव मकान बनाये गये थे। स्वयंवरमें अनेक राजा आये थे, परन्तु उनमें कोई विशेष चतुर न होनेके कारण वे सब ज्योंके त्यों लौटा दिये गये। सोमश्री अव तक अविवाहिता ही है। ___ इस तरहकी बातचीत करते हुए वे दोनोंजन शक्रस्तम्भके पास पहुंचे और उसे वन्दनकर एक ओर खड़े हो गये। उसी समय राजपरिवारकी महिलाएं भी स्थमें बैठकर वहाँ आयीं और शक्रस्तम्भको बन्दनकर महलकी ओर लौट पड़ीं। इतनेहीमें एक मदोन्मत्त हाथी जंजीर को तोड़कर वहाँ आ पहुँचा और भीड़में इधर-उधर चक्कर काटने लगा। यह देखते ही चारों ओर भगदड़ मच गयी। किसीको ढूँढमें लपेटकर इधर-उधर फेंक देता
और किसीको पैरके नीचे कुचल डालता। अचानक एक वार वह राजकुमारीके रथके पास जा पहुँचा और उसे उसने रथसे गिरा दिया। सब लोगोंको तो उस समय अपने-अपने प्राणोंकी पड़ी थी, इसलिये किसीका भी