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नेमिनाथ चरित्र
ध्यान उसकी ओर आकर्षित न हुआ। बेचारी राजकुमारीको असहाय और संकटावस्थामें देखकर वसुदेव चहाँ दौड़ आये और उस हाथीको वहाँसे खदेड़ने लगे। वह इससे और भी उत्तेजित हो उठा और राजकुमारीको छोड़कर वसुदेवकी ओर झपट पड़ा । वसुदेवने युक्तिसे काम लेकर उस हाथीको तुरन्त अपने वशमें कर लिया । पश्चात् हाथीसे अलग होनेपर वसुदेवकुमारने राजकुमारीको उठा लिया और उपचार करनेके लिये उसे पासके एक मकान में रख दिया। उस समय वह भय और आघात से मूच्छित हो गयी थी। पर जब उसे होश आया और वह स्वस्थ हुई तब उसकी दासियाँ उसे वासस्थान को लिवा ले गयीं ।
इसी नगर में रत्नवतीकी एक बहिन कुबेर सार्थवाहको
न्याही गयी थी । उससे भेट हो जाने पर वह अपने
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श्वसुर तथा वसुदेवको बड़े सम्मान - पूर्वक अपने मकान पर लिवा ले गया । वहाँ पर उसने भोजनादिक द्वारा उनका बड़ा ही सत्कार किया । पश्चात् भोजनादिकसे निवृत्त हो वे ज्योंहीं एक कमरे में बैठे, त्योंही सोमदत्त राजांका मन्त्री