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नेमिनाथ चरित्र
उत्पन्न हुआ जो आगे चल कर उसी राज्यका अधि
कारी हुआ ।
एक दिन रात्रिके समय हँसका रूप धारण कर अंगारक विद्याधरने कपटपूर्वक वसुदेवको गंगा नदीमें फेंक दिया, किन्तु वसुदेव किसी तरह तैरकर उससे बाहर निकल आये । वहाँसे वे इलावर्धन नामक नगर में गये । वहाँ पर वे एक सार्थवाहकी दुकान पर बैठकर विश्राम करने लगे। इतने में कुमारके प्रभावसे उस दिन दुकानदारको लाख रूपयेका मुनाफा हुआ। इससे वह दुकान-, दार उन्हें सोनेके रथमें बैठाकर अत्यन्त सम्मानपूर्वक अपने घर लिवा ले गया । वहाँपर उसने अपनी रत्नवती नामक कन्यासे उनका विवाह कर दिया । तदनन्तर वसुदेव अपने इस श्वसुर के आग्रहसे कुछ दिनोंके लिये वहीं ठहर गये ।
एक दिन महापुर नामक नगर में इन्द्र-महोत्सव था, इसलिये वसुदेव अपने श्वसुर के साथ एक दिव्य रथपर बैठ कर उसे देखने गये । वहाँपर नगरके बाहर एक समान नये मकानोंको देखकर बसुदेवने पूछा :- "यहाँपर यह सब नये - ही नये मकान क्यों दिखायी देते हैं ?" .
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