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छठा परिच्छेद
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वहाँपर उन्होंने राजा भाग्यसेनको धनुर्वेद की शिक्षा दी। एकदिन भाग्यसेनके साथ युद्ध करनेके लिये उसका बड़ा भाई मेघसेन नगर पर चढ़ आया, किन्तु वसुदेवकुमारने उसे बुरी तरह मार भगाया । इस युद्धमें वसुदेवका पराक्रम देखकर दोनों राजा प्रसन्न हो उठे, भाग्यसेनने प्रसन्न हो, अपनी पुत्री पद्मावती और मेघसेनने अपनी पुत्री अश्वसेनासे वसुदेवका विवाह कर दिया । कुछ दिनों तक उन दोनोंके साथ दाम्पत्य-जीवन व्यतीत कर कुमारने वहाँसे भी बिदा ग्रहण की ।
आगे बढ़ने पर वसुदेवको भद्दिलपुर नामक नगर मिला । "वहाँके राजा पुंढराजकी मृत्यु हो गयी थी । पुंद्रराज के एक कन्या थी, किन्तु पुत्र एक भी न था । उस कन्या का नाम पुंद्रा था । वह औषधियोंके प्रयोगसे पुरुपका रूप धारण कर पिताका राज्य चलाती थी। वसुदेवने बुद्धिवलसे तुरन्त जान लिया कि यह पुरुष नहीं, बल्कि खी है। वसुदेवको देखकर पंढाके हृदयमें भी अनुराग उत्पन्न हो गया था, इसलिये उसने वसुदेवके साथ व्याह कर लिया । पश्चात् उसके उदरसे पुंद्र नामक पुत्र