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छठा परिच्छेद
१८९ कि मित्रश्रीका विवाह वसुदेवके साथ होगा। उसका वह वचन आज सत्य प्रमाणित हुआ।
वहाँसे वेदसाम नगरकी ओर जाने पर इन्द्रशर्माकी पत्नी वनमालासे उनकी भेट हो गयी। वसुदेव उसे देखते ही चौकन्ने हो गये, किन्तु उसने उन्हें 'देवर' शब्दसे सम्बोधित कर उन्हें मीठी-मीठी बातोंसे बड़ी सान्त्वना दी और उन्हें समझा बुझाकर अपने घर लिवा ले गयी। वहाँपर उसने अपने पितासे उनका परिचय कराया। उसने वसुदेवसे कहा :- हे कुमार ! इस नगरके राजाका नाम कपिल है। उनके कपिला नामक एक कन्या है। कुछ दिन पहले उसके विवाहके सम्बन्धमें पूछताछ करने घर एक ज्ञानीने वतलाया था कि 'इसका विवाह वसुदेव कुमारके साथ होगा जो इस समय गिरितट नामक नगरमें रहते हैं। वे यहाँ आने पर स्फुलिङ्ग बदन नामक अश्वका दमन करेंगे। यही उनकी पहचान होगी।' तबसे हे कुमार ! राजा तुम्हारी खोजमें रहते हैं। बीचमें उन्होंने मेरे जामाता इन्द्रशर्माको तुम्हें ले आनेके लिये मेजा था, किन्तु "तुम कहीं वीचहीसे गायब हो गये।