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नेमिनाय-परित्र वसुदेव तृणशोषक नामक एक गाँवमें घुस गये और वहाँके देवकुलमें जाकर चुपचाप सो रहे। __परन्तु बुरे समयमैं दीन दुःखीको कहीं भी शान्ति नहीं मिलती। उस देवकुलमें भी रातके समय एक राक्षसने आकर वसुदेव पर आक्रमण कर दिया। लाचार, वसुदेवको उससे भी युद्ध करना पड़ा। राक्षस बड़ाही बलवान था इसलिये उसने वसुदेवको कई बार धर पटका, किन्तु अन्तमें वसुदेवने मोका पाकर उसके हाथ पैर बाँध दिये और जिस तरह धोबी शिला पर कपड़े पटकता है, उसी तरह उसे जमीन पर पटक कर मार डाला।
सुबह जब गाँवके लोगोंने देखा कि वह राक्षस, जो नित्य उन्हें सताया करता था, देवकुलके पास मरा पड़ा है, तब उनके आनन्दका वारापार न रहा। उन्होंने वसुदेवको एक रथमें बैठाकर सारे गाँवमें घुमाया और इस उपकारके बदले उनसे अपनी पाँच सौ' कन्याओंका विवाह कर देनेकी इच्छा प्रकट की। इसपर वसुदेवने कहा :-"पहले मुझसे इस राक्षसका हाल कह सुनाइये, फिर मैं तुम्हारे इस प्रस्तावर पर विचार करूँगा।" .