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छठा परिच्छेद
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विद्याकी साधना करने लगे । रातके समय जब वे उस कपटीके आदेशानुसार जप तपमें लीन हो गये, तब वह उन्हें एक पालकी में बैठाकर वहाँसे भाग चला। उसने वसुदेवको पहले ही समझा दिया था, कि साधनाके समय इस तरहका भ्रम हुआ करता है, इसलिये वे समझे कि वास्तवमें मुझे भ्रम हो रहा है । इस प्रकार इन्द्रशर्मा रात भरमें उन्हें गिरितटसे बहुत दूर उड़ा ले गया । सुबह सूर्योदय होने पर वसुदेव विशेषरूपसे सजग हुए तब यह बात उनकी समझ में आ गयी कि उन्हें वह कपटी विद्याधर पालकी में बैठाकर कहीं उड़ाये लिये जा रहा है।
अब और अधिक समय उस पालकी में बैठना वसुदेवके लिये कठिन हो गया । वे तुरन्त उस पालकीसे कूदकर एक ओरको भगे । यह देख, इन्द्रशर्माने उनका I पीछा किया। वे जहाँ जाते, वहीं पर वह जा पहुँचता । दिन भर यह दौड़ होती रही। न तो वसुदेवने ही हिंमत छोड़ी, न इन्द्रशर्माने ही उनका पीछा छोड़ा । अन्तमें शामके समय न जाने किस तरह उसे धोखा देकर
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