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नेमिनाथ चरित्र
इन्द्रशमाने कहा :- " बेशक, यह विद्या सीखने योग्य है | इस सीखने में अधिक परिश्रम भी नहीं पड़ता । शामसे इसकी साधना आरम्भ की जाय, तो सुबह सूर्योदय के पहले ही पहले यह विद्या सिद्ध हो जाती है । परन्तु साधनाके समय इसमें अनेक प्रकारके विन और बाधाएँ आ पड़ती हैं । कभी कोई बराता है, कभी मारता है, कभी हँसता है और कभी ऐसा मालूम होता है, मानो हम किसी सवारीमें बैठे हुए कहीं चले जा रहे हैं। इसीलिये इसकी साधना समय एक सहायककी जरूरत रहती हैं ।"
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वसुदेवने निराश होकर कहा :- "यहाँ पर विदेशमें मेरे पास सहायक कहाँ ? क्या मैं अकेला इसे सिद्ध न कर सकूँगा ?"
इन्द्रशमने कहा :- "कोई चिन्ताकी बात नहीं, आप अकेले ही सिद्ध करिये। मैं आपकी सहायताके लिये हरवक्त यहाँपर मौजूद रहूँगा । काम पड़ने पर मेरी यह स्त्री - वनमाला भी हमें सहायता कर सकती है ।" इन्द्रशर्मा के यह वचन सुनकर वसुदेव यथाविधि उस
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