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नेमिनाथ-चरित्र __ मैंने कहा :-"इस समय मुझे कुछ भी नहीं कहना है। जब मुझे आवश्यकता होगी, मैं तुम्हें याद करूँगा। उस समय तुम मुझे यथेष्ट सहायता कर सकते हो।"
मेरी यह बात सुनकर वह देव तो अपने वासस्थानको चला गया। इधर वे दोनों विद्याधर मुझे अपने नगर (शिवमन्दिर ) में ले गये। वहाँपर उन विद्याघरोंने, उनकी माताने, उनके बन्धुओंने तथा अन्यान्य विद्याधरोंने मेरा बड़ाही सम्मान किया। मैं जितने दिन वहाँ रहा, उतने दिन एक समान मेरा स्वागत-सत्कार होता रहा। अन्त में जब मैं वहॉसे चलनेको तैयार हुआ, तब उन्होंने मुझे गन्धर्वसेनाको दिखाकर कहा:"हमारे पिताजीने दीक्षा लेते समय हमसे कहा था, कि एक ज्ञानीके कथनानुसार गन्धर्वसेनाको वसुदेव कुमार संगीत कलामें पराजित करेंगे, और उन्हींके साथ इसका विवाह होगा। वसुदेव कुमार भूमिचर हैं, इसलिये मेरे परम बन्धु चारुदत्तके यहाँ तुम इस कन्याको भेज देना। ऐसा करनेसे इसका विवाह आसानीसे हो जायगा और