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नेमिनाथ चरित्र कुछ दूर आगे बढ़ने पर मुझे एक जंगल मिला। उस जंगलमें एक पर्वत था। कौतूहल वश मैं उसके ऊपर चढ़ गया। वहाँ पर कायोत्सर्ग करते हुए एक मुनिराज मुझे दिखायी दिये। मैं उन्हें वन्दन कर उनके पास पैठ गया। उन्होंने मुझे धर्मोपदेश देनेके बाद पूछा :-"हे चारुदत्त ! आप इस विषम भूमिमें किस प्रकार आ पहुँचे ? यहाँ देवता और विद्याधरोंके सिवा दूसरोंके लिये आना बहुत ही कठिन है।" ___ मुनिराजके यह वचन सुनकर मैं बड़े आश्चर्यमें पड़ गया ; क्योंकि मैं तो उन्हें पहचानता न था और वे एक परिचित की भॉति मुझसे बातें करते थे। यह देख, मैं उनकी ओर बार-बार देखने लगा। मेरी यह उलझन शीघ्र ही मुनिराजकी समझमें आ गयी। उन्होंने कहा :"मेरा नाम अमितगति है। आपने एकवार मुझे बन्धन-मुक्त किया था। आपके पाससे रवाना हो, अष्टापद पर्वतके पास मैंने अपने उस शत्रको पकड़ लिया। मुझे देखते ही वह मेरी स्त्रीको छोड़कर पर्वतके किसी अगम्य स्थानमें भाग गया।