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छठा परिच्छेद उसके भाग जाने पर में अपनी स्त्रीको लेकर अपने वासस्थानको चला गया। इस घटनाके कुछ दिन बाद मेरे पिताने मुझे अपना राज्य-भार सौंप, हिरण्यकुंभ और सुवर्णकुम्भ नामक मुनियोंके निकट दीक्षा ले ली। अब मेरे दिन आनन्दमें कटने लगे। मैंने दीर्घकाल तक राज्य-शासन किया। इस बीचमें मेरी मनोरमा नामक स्त्रीने सिंहयशा और वराहग्रीव नामक दो पुत्रोंको जन्म 'दिया, जो मेरे ही समान पराक्रमी और गुणवान हैं। दूसरी स्त्री विजयसेनाने गन्धर्वसेना नामक एक पुत्रीको जन्म दिया, जो गायन-वादन और सङ्गीतकी कलामें परम निपुण है। पुत्र-पुत्रियोंका सब सुख देखने के बाद अन्तमें मैंने अपना राज्य अपने दोनों पुत्रोंको सौंपकर पिताजीके निकट दीक्षा ले ली। तबसे मैं यहीं रहता हूँ
और धर्माराधनमें अपना समय व्यतीत करता हूँ। यह द्वीप कुम्भकंठके नामसे प्रसिद्ध है और लवण समुद्रमें अवस्थित है। इस पर्वतको कर्कोटक कहते हैं। आशा है कि मेरे इस परिचयसे आपकी उलझन दूर हो गयी होगी। अव आपका यहाँ आना किस प्रकार हुआ सो वतलाइये।"