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छठा परिच्छेद मुझे बड़ा दुःख है, लेकिन जैन धर्म तेरा सहायक हो सकता है। तू उसीकी शरण स्वीकार कर । संकटके समय धर्म ही वन्धु, धर्म ही माता और धर्म ही पिता होता है ।"
मेरी यह बात सुन, उस बकरेने शिर झुकाकर जैन धर्म स्वीकार किया । मैंने उसे नवकार मन्त्र सुनाया और वह उसने बड़ी शान्तिसे सुना । इतने में रुद्रदत्तने उसे भी मार डाला। मर कर वह तो देवलोक गया और हमलोग एक-एक छुरी हाथमें लेकर उनकी खालों में छिप रहे । उसी समय वहाँ दो भारण्डपक्षी आ पहुँचे और हमें चंगुल में पकड़ कर एक ओरको ले उड़े।
मार्गमें, जो भारण्ड पक्षी मुझे लिये जा रहा था, उस पर एक दूसरे भारण्डने आक्रमण कर दिया । शायद वह भूखा था इसलिये उस भारण्डसे वह मुझे छीन लेना चाहता था । दोनोंकी छीना झपटीमें मैं उसके चंगुलसे - छुटकर एक सरोवर में जा गिरा । मैं तुरन्त अपनी छुरीसे उस खालको चीर कर बन्धन मुक्त हुआ और सरोवरसे बाहर निकल कर एक तरफ चल पड़ा ।