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नेमिनाथ चरित्र
अत्यन्त आवश्यकता है। यदि यह बात ठीक हो, तो तुम मेरे साथ एक पर्वत पर चलो। मैं वहॉपर तुम्हें एक ऐसा रस दूँगा, जिससे तुम जितना चाहो, उतना सोना बना सकोगे ।"
धनकी आवश्यकता तो मुझे थी ही, इसलिये मैं उसी समय उसके साथ चल पड़ा। एक भयंकर जंगलके रास्ते हमलोग उस पर्वत पर पहुॅचे। इसके मध्य भागमें दुर्गपाताल नामक एक भयानक गुफा थी । इस गुफाका द्वार एक बड़े भारी पत्थर से बन्द था । त्रिदण्डीने मन्त्र - बलसे उसे खोलकर उसमें प्रवेश किया। मैं भी उसके साथ ही था । इधर-उधर भटकनेके बाद हमलोग उस कूपके पास जा पहुँचे, जिसमें वह सोना बनानेवाला रस भरा था। वह कूप चार हाथ चौड़ा काफी गहरा और देखने में बहुत ही भयङ्कर था । वहाँ पहुँचने पर त्रिदण्डीने मुझसे कहा :- " तुम इस कूपमें उतर कर इस कमण्डलमें रस भर लाओ ! नीचे से ज्योंही तुम रस्सी हिलाओगे, त्योंही मैं तुम्हें ऊपर खींच लूँगा ।"
त्रिदण्डीके आदेशानुसार मैं एक मचिया पर बैठ,