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नैष्कर्म्यसिद्धिः
उत्तर --
- " यदा सर्वे प्रमुच्यन्ते कामा येऽस्य हृदि स्थिताः ।" यह तथा " इति नु कामयमान” इत्यादि वृहदारण्यक - श्रुति 'कामनाओं के छूट जानेपर यह पुरुष ब्रह्मको प्राप्त हो जाता है' इसी सिद्धान्तका प्रतिपादन करती है और भगवान् श्रीव्यास भी जहाँहाँ यही बात कहते हैं ॥ ४४ ॥
एवं संसारपन्था व्याख्यातः । अथेदानीं तद्वद्यावृत्तये कर्माण्यारादुपकारकत्वेन यथा मोक्षहेतुतां प्रतिपद्यन्ते तथाऽभिधीयते ।
यह संसार के कारणका, व्याख्यान किया गया। इसके अनन्तर श्रम उससे छुटकारा पाने के लिए 'कर्म किस प्रकार परम्परासे मोक्ष के साधक हो सकते हैं यह प्रतिपादन किया जाता है
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तस्यैवं दुःखतप्तस्य कथञ्चित् पुण्यशीलनात् । नित्येहाक्षालितधियो वैराग्यं जायते हृदि ।। ४५ ।।
इस प्रकार दुःख से सन्तप्त मनुष्यके हृदय में, किसी प्रकार पुण्यशील हो जानेम नित्यकर्मानुष्ठानके प्रभावसे चित्तकी शुद्धि होनेसे वैराग्य उत्पन्न हो जाता है || ४५ ॥ कीवैराग्यमुत्पद्यत इति, उच्यते
किस प्रकारका वैराग्य उत्पन्न होता है, यह अग्रिम श्लोकसे कहते हैं
नरकाद्भीर्यथाऽस्याऽभूत्तथा काम्यफलादपि । यथार्थदर्शनात्तस्मान्नित्यं कर्म चिकीर्षति ॥ ४६ ॥
जिस प्रकार इस साधक पुरुषको नरकसे भय हुआ करता था, उसी प्रकार काम्यकर्मों के फल से भी "यह अनित्य है और तारतम्यसे युक्त है" इस प्रकारके यथार्थ ज्ञानसे, उसको भय होता है। इसलिए फिर वह ( काम्यकर्मोंको छोड़कर ) केवल नित्यकर्म करनेकी इच्छा करता है ॥ ४६ ॥
एवं नित्यनैमित्तिककर्मानुष्ठानेन -
शुद्धयमानं तु
तच्चित्तमीश्वरार्पितकर्मभिः |
वैराग्यं ब्रह्मलोकादौ व्यनक्त्यथ सुनिर्मलम् ॥ ४७ ॥
इस प्रकार नित्य और नैमित्तिक कर्मोंको ईश्वरार्पण करनेसे चित्त शुद्धिक द्वारा ब्रह्मलोक पर्यन्त समस्त अनात्म वस्तु अतीव निर्मल – विशुद्ध-वैराग्य हो जाता है ॥ ४७ ॥
यस्माद्र जस्तमोमलोपसंसृष्टमेव चित्तं कामवडिशेनाऽऽकृष्य विषय दुरन्तसूनास्थानेषु निः क्षिप्यते, तस्मान्नित्यनैमित्तिक कर्मानुष्ठानपरिमार्जनेनापविद्धरजस्तमोमलं प्रसन्नमनाकुलं सम्मार्जितस्फटिकशिला