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भाषानुवादसहिता
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काल से हैं और तत्त्वज्ञान तो अभी उत्पन्न हुआ है, इसलिए वह अनादि काल से प्रवृत्त मिथ्या ज्ञानसे दब जायगा । अतः उसको अपनी स्थिति के लिए अभ्यासकी अपेक्षा अवश्य होनी चाहिए, परन्तु क्या कारण है जो वह अभ्यासकी अपेक्षा नहीं करता ? समाधान - ]
बलवद्धि प्रमाणोत्थसम्यग्ज्ञानं न बाध्यते ।
आकाङ्क्षते न चाऽप्यन्यद्बाधनं प्रति साधनम् || ३६ |
यह तत्त्वज्ञान प्रमाणसे उत्पन्न होनेके कारण प्रबल है, इसलिए मिथ्याज्ञानसे बाधित नहीं होता और प्रबल होनेके कारण ही वह मिथ्याज्ञानके संस्कारोंको नष्ट करने में किसी दूसरे सहायककी अपेक्षा भी नहीं करता || ३६ ॥
स्वपक्षस्य हेत्ववष्टम्भेन समर्थितत्वान्निराशङ्कमुपसंह्रियते ।
प्रबल प्रमाणोंसे अपने पक्षका समर्थन करके अत्र निःशङ्क होकर अग्रिम श्लोकसे उपसंहार किया जाता है
तस्मादुःखोदधेर्हेतोरज्ञानस्याऽपनुत्तये ।
सम्यग्ज्ञानं सुपर्याप्तं क्रिया चेनोक्तहेतुतः || ३७ ॥
पूर्वोक्त करणोंसे दु.ख- समुद्र के कारण अज्ञानको दूर करने के लिए तत्त्वज्ञान ही समर्थ है, पूर्वोक्त दोषोंके कारण कर्म नहीं ॥ ३७ ॥
ननु बलवदपि सम्यग्ज्ञानं सदप्रमाणोत्थेनाऽसम्यग्ज्ञानेन बाध्यमानमुपलभामहे । यत उत्पन्नपरमार्थबोधस्याऽपि कर्तृत्वभोक्तृत्वरागद्वेषाद्यनवबोधोत्थप्रत्यया आविर्भवन्ति । न ह्यबाधिते सम्यग्ज्ञाने तद्विरुद्धानां प्रत्ययानां सम्भवोऽस्ति ।
प्रमाण से उत्पन्न हुए मिथ्याज्ञानसे सांसारिक पुरुषोंके समान ज्ञानसे
शङ्का - तत्त्वज्ञान अत्यन्त प्रबल होनेपर भी बाधित होते देखा जाता है । क्योंकि तत्त्वज्ञानीको भी उत्पन्न कर्तृत्व, भोक्तृत्व, राग, द्वेष इत्यादि भावनाएँ उत्पन्न होती हैं। बिना तत्त्वज्ञानके बाधित हुए तो उसके विरुद्ध यह सब मिथ्याज्ञान हो ही नहीं सकते ? ( इसलिए तत्त्वज्ञान का मिथ्याज्ञानसे बाध अवश्य होता है ? )
नैतदेवम् । कुतः -
बाधितत्वादविद्याया विद्यां सा नैव बाधते ।
तद्वासना निमित्तत्वं यान्ति विद्यास्मृतेर्भुवम् ॥ ३८ ॥
समाधान- ( आपके कथनानुसार ) तत्त्वज्ञान मिथ्याज्ञानसे बाधित नहीं होता । क्योंकि तत्त्वज्ञान से अविद्या बाधित अर्थात् नष्ट हो जाती है, इसलिए वह उसका