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________________ अध्याय १ सूत्र ३ (२) जिस जीवके सम्यग्दर्शन प्रगट होता है उस जीवने उस समय अथवा पूर्व भवमें सम्यग्ज्ञानी आत्मासे उपदेश सुना होता है। [उपदिष्ट तत्त्वका श्रवण, ग्रहण-धारण होना; विचार होना उसे देशनालब्धि कहते हैं] उसके बिना किसीको सम्यग्दर्शन नहीं होता। इसका यह अर्थ नही समझना चाहिये कि वह उपदेश सम्यग्दर्शनको उत्पन्न करता है। जीव सम्यरदर्शनको स्वतः अपनेमे प्रगट करता है, ज्ञानीका उपदेश तो निमित्त मात्र है । अज्ञानीका उपदेश सुनकर कोई सम्यग्दर्शन प्रगट नहीं कर सकता यह नियम है । और, यदि सद्गुरु का उपदेश सम्यग्दर्शन उत्पन्न करता हो तो, जो जो जीव उस उपदेशको सुनें उन सबको सम्यग्दर्शन हो जाना चाहिये, किंतु ऐसा नही होता । सद्गुरुके उपदेशसे सम्यग्दर्शन हुआ है, यह कथन व्यवहारमात्र है,-निमित्तका ज्ञान करानेके लिए कथन है। (३ ) अधिगमका स्वरूप इस अध्यायके छ8 सूत्रमे दिया गया है। वहां बताया है कि-'प्रमाण और नयके द्वारा अधिगम होता है'। प्रमाण और नयका स्वरूप उस सूत्रकी टीकामें दिया है, वहाँसे ज्ञात करना चाहिये। (४) तीसरे सूत्रका सिद्धान्त जीवको अपनी भूलके कारण अनादिकालसे अपने स्वरूपके सबंधमे भ्रम बना हुआ है। इसलिये उस भ्रमको स्वयं दूर करने पर सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है । जीव जब अपने सच्चे स्वरूपको समझनेकी जिज्ञासा करता है तब उसे आत्मज्ञानीपुरुषके उपदेशका योग मिलता है । उस उपदेशको सुनकर जीव अपने स्वरूपका यथार्थ निर्णय करे तो उसे सम्यग्दर्शन होता है । किसी जीवको श्रात्मज्ञानी पुरुषका उपदेश सुननेपर तत्काल सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है, और किसीको उसी भवमे दीर्घकालमै अथवा दूसरे भवमे उत्पन्न होता है । जिसे तत्काल सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है उसे 'अधिगमज सम्यग्दर्शन' हुआ कहलाता है, और जिसे पूर्वके संस्कारसे उत्पन्न होता है उसे 'निसर्गज सम्यग्दर्शन हुआ कहलाता है। [कोई जीव अपने आप शास्त्र पढ़कर या अज्ञानीका उपदेश सुनकर सम्यग्दर्शन को प्राप्त करलें ऐसा कभी नही हो सकता है-देशना लब्धिके विषयमें सब प्रश्नोका संपूर्ण समाधानवाला लेख देखो-आत्मधर्म वर्ष छठवां अक नं. ११-१२]
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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