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अध्याय १ सूत्र १
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जो तीर्थंकर भगवान के पास होती हैं; क्योकि पुण्य आत्मा की शुद्धता
नही है ।
(१०) मंगलाचरण में गुरणों से पहचान करके भगवानको नमस्कार किया है । अर्थात् भगवान विश्व के (समस्त तत्त्वोके) ज्ञाता है, मोक्षमार्गके नेता है, और उनने सर्व विकारों ( दोषो ) का नाश किया है, इस प्रकार भगवान के गुरगोका स्वरूप बतलाकर गुरगोकी पहचान करके उनको स्तुति की है । निश्चय से अपनी आत्मा की स्तुति की है ।
* प्रथम अध्याय
निश्चय मोक्षमार्गकी व्याख्या
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ॥ १ ॥
- [ सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि ] सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र, तीनों मिलकर [ मोक्षमार्गः ] मोक्षका मार्ग है, अर्थात् मोक्षको प्राप्तिका उपाय है ।
टीका
(१) सम्यक् — यह शब्द प्रशंसावाचक है, जो कि यथार्थता को सूचित करता है । विपरीत आदि दोषोका प्रभाव 'सम्यक्' है ।
दर्शन - का अर्थ है श्रद्धा; 'ऐसा ही है - अन्यथा नही' ऐसा प्रतीतिभाव ।
विपर्यय और अनध्यवसायरहित अपने
सम्यग्ज्ञान — संशय, आत्माका तथा परका यथार्थज्ञान सम्यग्ज्ञान है ।
संशय "विरुद्धानेककोटिस्पशिज्ञान संशयः", अर्थात् 'ऐसा है कि ऐसा है' इस प्रकार परस्पर विरुद्धतापूर्वक दो प्रकाररूप ज्ञानको संशय कहते है; जैसे श्रात्मा अपने कार्यको कर सकता होगा या जड़के कार्यको ? शुभ रागरूप व्यवहार से धर्म होगा या वीतरागतारूप निश्चयसे ?