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मोक्षशास्त्र विपर्यय-"विपरीतैककोटिनिश्चयो विपर्ययः"; अर्थात् वस्तुस्वरूप से विरुद्धतापूर्वक 'ऐसा ही है' इसप्रकारका एकरूपज्ञान विपर्यय है; जैसे शरीरको आत्मा जानना ।
अनध्यवसाय-"किमित्यालोचनमात्रमनध्यवसायः" अर्थात् 'कुछ है ऐसा निर्धाररहित विचार अनध्यवसाय है, जैसे मै कोई कुछ है, ऐसा जानना। [विशेष:-जीव और प्रात्मा दोनो शब्द एक ही अर्थ में प्रयुक्त होते हैं।]
सम्यकचारित्र-(यहाँ 'सम्यक्' पद अज्ञानपूर्वक आचरणकी निवृत्ति के लिये प्रयुक्त किया है। ) सम्यग्दर्शन-ज्ञानपूर्वक आत्मामें स्थिरता का होना सम्यक् चारित्र है ।
__यह तीनों क्रमशः आत्मा के श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र गुणोंकी शुद्ध पर्याये हैं।
मोक्षमार्ग--यह शब्द एकवचन है, जो यह सूचित करता है कि मोक्षके तीन मार्ग नही, किन्तु इन तीनों का एकत्व मोक्षमार्ग है । मोक्षमार्ग का अर्थ है अपने आत्माकी शुद्धिका मार्ग, पंथ, उपाय। उसे अमृतमार्ग, स्वरूपमार्ग अथवा कल्याणमार्ग भी कहते है ।
(२) इस सूत्रमें अस्तिसे कथन है, जो यह सूचित करता है कि इससे विरुद्ध भाव, जैसे कि राग, पुण्य इत्यादिसे धर्म होता है या वे धर्ममें सहायक होते है, इसप्रकारकी मान्यता, ज्ञान और प्राचरण मोक्षमार्ग
नही है।
(३) इस सूत्रमे "सम्यग्दर्शनशानचारित्राणि" कहा है वह निश्चय रत्नत्रय है व्यवहार रत्नत्रय नही है, उसका कारण यह है कि व्यवहार रत्नत्रय राग होनेसे बंधरूप है।
(४) इस सूत्र में 'मोक्षमार्ग' शब्द निश्चय मोक्षमार्ग बताने के लिये कहा है । ऐसा समझना ।
(५) मोक्षमार्ग परम निरपेक्ष है"निजपरमात्म तत्त्वके सम्यक् श्रद्धा-ज्ञान अनुष्ठानरूप शुद्ध रत्नत्र