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मोक्षशास्त्र
पुलाकादि मुनियों में विशेषता संयमश्रुतप्रति सेवनात्तीर्थ लिंगलेश्योपपादस्थानविकल्पतः साध्याः ॥ ४७ ॥
अर्थ - उपरोक्त मुनि [ संयमश्रुतप्रतिसेवनातोर्थलिगलेश्योपपादस्थानविकल्पतः ] संयम, श्रुत, प्रतिसेवना, तीर्थ, लिङ्ग, लेश्या, उपपाद और स्थान इन आठ अनुयोगों द्वारा [ साध्याः ] भेदरूपसे साध्य हैं, अर्थात् इन आठ प्रकारसे इन पुलाकादि मुनियोंमें विशेष भेद होते हैं ।
टीका
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(१) संयम - पुलाक, बकुश, और प्रतिसेवना कुशील साधुके सामायिक और छेदोपस्थापन ये दो संयम होते हैं । कषाय कुशील साधुके सामायिक, छेदोपस्थापन, परिहारविशुद्धि और सूक्ष्मसांपराय, ये चार संयम होते है; निग्रंथ और स्नातकके यथाख्यात चारित्र होता है ।
(२) श्रुत- पुलाक, बकुश और प्रतिसेवना कुशील साधु ज्यादासे ज्यादा सम्पूर्ण दश पूर्वधारी होते है, पुलाक के जघन्य आचारांग में आचारा वस्तुका ज्ञान होता है और बकुश तथा प्रतिसेवना कुशील के जघन्य अष्टप्रवचन माताका ज्ञान होता है अर्थात् आचारांगके १८००० पदोंमेंसे पांच समिति और तीन गुप्तिका परमार्थं व्याख्यान तक इन साधुओंका ज्ञान होता है; कषायकुशील और निर्ग्रथके उत्कृष्ट ज्ञान चौदह पूर्वका होता है और जघन्यज्ञान आठ प्रवचन माता का होता है । स्नातक तो केवल ज्ञानी है, इसीलिये वे श्रुतज्ञान से दूर हैं । [ अष्ट प्रवचन माता- तीन गुप्ति - पाँच समिति ]
(३) प्रतिसेवना - ( - विराधना) पुलाकमुनिके परवशसे या जबर्दस्ती से पाँच महाव्रत और रात्रिभोजनका त्याग इन छहमें से किसी एक को विराधना हो जाती है । महाव्रतोंमें तथा रात्रिभोजन त्यागमें कृत, कारित, धनुमोदनासे पाँचों पापोंका त्याग है उनमे से किसी प्रकार में सामर्थ्य की