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अध्याय ६ सूत्र ४७ हीनतासे दूषण लगता है; उपकरण-बकुश मुनिके कमंडल, पीछी, पुस्तकादि उपकरणकी शोभाकी अभिलाषाके संस्कारका सेवन होता है, सो विराधना जानना । तथा बकुशमुनिके शरीरके संस्काररूप विराधना होती है। प्रतिसेवनाकुशील मुनि पाँच महानतको विराधना नही करता किन्तु उत्तरगुरणमे किसी एककी विराधना करता है । कषायकुशील, निम्रन्थ और स्नातकके विराधना नही होती।
(४) तीर्थ-ये पुलाकादि पांचों प्रकारके निम्रन्थ समस्त तीर्थङ्करोंके धर्मशासनमें होते हैं।
(५) लिंग-इसके दो भेद हैं १-द्रव्यलिंग और २-भावलिंग। पांचों प्रकारके निम्रन्थ भावलिगी होते हैं। वे सम्यग्दर्शन सहित संयम पालने में सावधान है। भावलिंग का द्रव्यलिगके साथ निमित्त नैमित्तिक संबंध है। यथाजातरूप लिंगमे किसीके भेद नही है किन्तु प्रवृत्तिरूप लिंग में अंतर होता है, जैसे कोई आहार करता है, कोई अनशनादि तप करता है, कोई उपदेश करता है, कोई अध्ययन करता है, कोई तीर्थमे विहार करता है, कोई अनेक आसनरूप ध्यान करता है, कोई दूषण लगा हो तो उसका प्रायश्चित्त लेता है, कोई दूषण नही लगाता, कोई प्राचार्य है, कोई उपाध्याय है, कोई प्रवर्तक है, कोई निर्यापक है, कोई वैयावृत्य करता है, कोई ध्यानमें श्रेणीका प्रारम्भ करता है; इत्यादि राग (-विकल्प ) रूप द्रव्यलिंगमे मुनिगणोंके भेद होता है। मुनिके शुभभावको द्रव्यलिंग कहते हैं । इसके अनेक भेद हैं। इन प्रकारोको द्रव्यलिंग कहा जाता है ।
(६) लेश्या-पुलाक मुनिके तीन शुभ लेश्यायें होती हैं । बकुश तथा प्रतिसेवनाकुशोल मुनिके छहो लेश्या भी होती हैं । कषाय से अनुरंजित योग परिणतिको लेश्या कहते है ।
प्रश्न-बकुश तथा प्रतिसेवनाकुशील मुनिके कृष्णादि तीन अशुभ लेश्याये किस तरह होती हैं ?
उचर-उन दोनों प्रकारके मुनिके उपकरणकी कुछ आसक्तिके