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मोक्षशास्त्र उनके सत्य और अनुभय दो प्रकारके मनोयोगको उत्पत्ति कही जाती है वह उपचारसे कही जाती है। उपचारसे मन द्वारा इन दोनों प्रकारके वचनोंकी उत्पत्तिका विधान किया गया है। जिस तरह दो प्रकारका मनोयोग कहा गया है उसीप्रकार दो प्रकारका वचन योग भी कहा गया है, यह भी उपचारसे है क्योंकि केवली भगवानके बोलनेकी इच्छा नहीं है, सहजरूपसे दिव्यध्वनि है।
(श्री घवला पुस्तक १ पृष्ठ २८३ तथा ३०८ ) ४-क्षपक तथा उपशमक जीवोंके चार मनोयोग किस तरह हैं ?
शंका-क्षपक (-क्षपक श्रेणीवाले ) और उपशमक ( उपशम श्रेणीवाले ) जीवोके भले ही सत्यमनोयोग और अनुभय मनोयोगका सद्भाव हो किन्तु बाकीके दो-असत्यमनोयोग और उभयमनोयोगका सद्भाव किस तरह है ? क्योंकि उन दोनोंमें रहनेवाला जो अप्रमाद है सो असत्य और उभयमनोयोगके कारणभूत प्रमादका विरोधी है अर्थात् क्षपक और उपशमक प्रमाद रहित होता है, इसीलिये उसके असत्य मनोयोग और उभयमनोयोग किस तरह होते है ?
समाधान-आवरणकर्मयुक्त जीवोके विपर्यय और अनध्यवसायरूप अज्ञानके कारणभूत मनका सद्भाव माननेमे और उससे असत्य तथा उभयमनोयोग मानने में कोई विरोध नही; परन्तु इस कारणसे क्षपक और उपशमक जीव प्रमत्त नहीं माने जा सकते, क्योकि प्रमाद मोहकी पर्याय है।
(श्री धवला पु० १ पृष्ठ २८५-२८६) नोट-ऐसा माननेमे दोष है-कि समनस्क (-मनसहिल )जीवोंके ज्ञानकी उत्पत्ति मनोयोगसे होती है। क्योकि ऐसा मानने में केवलज्ञानसे व्यभिचार पाता है। किन्तु यह बात सत्य है कि समनस्क जोवोंके क्षायोपगमिक ज्ञान होता है और उसमें मनोयोग निमित्त है। और यह मानने में भी दोप है कि-समस्त वचन होनेमें मन निमित्त है, क्योकि ऐसा